Thursday, May 17, 2018

Nari

नारी क लिए 352 पर्यायवाची हैं। उनमे से मैंने 78 को एक साथ पिरोने की कोशिश की है।
         *नारी*
नारी तेरे नाम अनेक,
लेकिन तुम होकर एक।
इस जग में शील और,
शौर्य भर जाती हो।

स्त्री, महिला, औरत,
कामिनी, कांता, बनिता,
और अबला, रमणी, सुंदरी की,
संज्ञा हर जाती हो।

जन्म लेकर तुम कन्या,
आत्मजा, पुत्री और तनया,
तनुजा, नंदिनी, सुता,
बेटी, दुहिता कहाती हो।

फिर तरुणी और बाला,
कुमारी, किशोरी, श्यामा,
नव यौवना होकर तुम,
युवती बन जाती हो।

सहोदया,भगिनी, जीजी,
अनुजा, अग्रजा, दीदी,
बहिन, बांधवी तुम,
भाईयों की हो जाती हो।

पत्नी, भार्या, अर्धांगिनी,
प्राणप्रिया, वामांगिनी,
सहचरी, कलत्र, दारा से,
तुम नर संगिनी बन जाती हो।

माता, माई, मैया, आई,
प्रसु और जननी कहाई,
अम्मी,मम्मी, अम्मा मां बन,
तुम सृष्टि रच जाती हो।

लज्जा, देवी, धृति, चंडी,
प्रज्ञा, दूति:, कात्यायनी,
आत्रेयी आदि नामों से,
तुम जग में पूजी जाती हो।

मतकाशिनी, वरारोहा,
वरवर्णिनी, पतिर्वरा
स्वयंवरा, बन कर
नर श्रेष्ठ तुम हो जाती हो।

महिषी, भिषेका, कृतस,
मानवी, मानसिका,भामा,
अध्यूढ़ा, श्यालिका संज्ञा तुम्हें
विदूषी बनाती है।

और भी अनेक नामों,
से हो तुम जानी जाती,
श्रवणा,सौरिंध्रि: निर्वीरा
भी कहाती हो।

*अमिताभ प्रियदर्शी*

Wednesday, January 3, 2018

कैसा नव वर्ष


कहते है कि वह साल पुराना चला गया।
अब इस धरती पर सब कुछ होगा नया नया।।

पर दिन भी वही और रात पुरानी लगती है।
ना सूरज में भी कोई मुझको बात सुहानी लगती है।

चांद में भी वही काला दाग पुराना लगता है।
हर जीवन में ताल वही और राग पुराना लगता है।।

अब भी चौराहे पर वही पुराना बचपन पलता है।
कई घरों में आज भी चूल्हा कचरे से ही जलता है।।

आज भी धन्नासेठ यहां पर धन-दौलत में हैं डूब रहे।
और लोग हजारों यहां पड़े हैं, जो जीवन से ऊब रहे।।

आज भी कूड़े में अनचाही किलकारी गूंजा करती है।
और बीच चौराहे पर रोज यहां निर्भयाएं मरती हैं।

फिर कैसे कहते हो कि, साल नया एक आयेगा?
क्या निश्चय है वह हमारे पाप पुराने धो जायेगा?

हर साल यहां पर यूंही झूठे सपने संजोये जाते हैं।
नये साल की रातों में, कई अरमान डुबोये जाते हैं।।

जब क्लबों और बारों में यह रात सुरमई होती हैं,
दूर कहीं किसी मां की सूखी छाती रोती है।

और सिसक कर मर जाता है कोई प्यार यहां।
तो फिर कैसे आता है नया साल मेरे यार यहां?

जब तक भूख से मरना देश में कम नहीं होगा,
नये साल के आने से भी दर्द वो कम नहीं होगा।

जब तक निर्भयाएं यहां  चौराहे पर चिल्लायेगी,
सच मानो नयी सुबह भी यहां आने से शरमायेगी।।

भूख, रुदन और काम वासना से ऊपर जब उठ जाओगे।
हर रात सुहानी होगी तब, हर सुबह नया साल पाओगे।

@अमिताभ प्र्रियदर्शी

Thursday, October 20, 2016

bahut dino baad

बहुत दिनों बाद आज फिर यहाँ आया हूँ , पर लिखने का मन नहीं है बस देखना चाहा की कुछ बदला तो नहीं ?
लिखूंगा जल्द ही कुछ लिखा भी हूँ  उसे आप तक पहुचाहूंग जल्द!

Sunday, December 12, 2010

तुम मंदिर की नींव रख लो
तुम नींव मंदिर की,
हम मस्जिद की बुनियाद रख लें.
तुम नमाज से,
हम आरती से ऊपर वाले तक फ़रियाद रख लें.
अमन और शांति के,
मायने तो एक ही है,
चाहे तुम उर्दू की,
हम हिंदी की जुबान रख लें.
न तुमने देखा खुदा को,
न हमने भगवान देखा.
फिर क्यों नहीं,
मंदिर - मस्जिद का नाम मकान रखा दें .
ये सारी बातें सिर्फ मानने की हैं,
तुम अपने पास गीता, हम कुरआन रखा लें.
हमें पैदा करने वाला तो एक ही है,
तुम उसका नाम अल्लाह,
हम भगवान रख लें.
 

Thursday, April 30, 2009

छोटे- छोटे अक्षर कैसे ,

शब्दों में ढल जाते हैं ?

वाक्यों में फ़िर कैसे

ये शब्द बदल जाते हैं ,

फ़िर बनती कविता अनोखी

जो दिल को छू जाती है,

कैसे होता ये परिवर्तन

ये कोई भी जाने ना,

ये अक्षर तेरे -मेरे दिल के

अहसास बदल जाते हैं ।

छोटे -छोटे अक्षर कैसे ,

शब्दों में ढल जाते हैं

जो कहते हम ,

जो सुनते हम ,

जो बातें गढ़ जाते हैं,

मन की सारी अनुभूतियाँ भी ,

ये शब्द ही दे जाते हैं ।

दुःख हो तन का ,

या मन का सुख हो ,

ये शब्द बता जाते हैं ।

प्रेम , क्रोध, इर्ष्या , द्वेष ,

ये शब्द जता जाते हैं ।

छोटे -छोटे अक्षर कैसे ,
शब्दों में ढल जाते हैं ।

वाक्यों में फ़िर कैसे
ये शब्द बदल जाते हैं ,

शब्दों की ये भाषा गर

न होती तो क्या होता ?

ये धरती कैसी ?

आस्मां कैसा ?

ये इंसान कैसा होता ?

शब्दों का ये मेल न होता

तो हम ही बदल जाते ,

छोटे -छोटे अक्षर भी

फ़िर रूप बदल जाते।

फ़िर न बनती कोई कविता

जो दिल को छू जाती ,

तेरी - मेरी अनुभूतियाँ भी फ़िर

यूँ ही रह जातीं ।

Sunday, April 5, 2009

तुम मुझे ऐसे ही अच्छी लगती हो

जिंदगी तुम मुझे ऐसे ही अच्छी लगती हो
जिंदगी आगाज़ ,
जिंदगी परवाज़ ,
जिंदगी कल ,
जिंदगी आज ।
जिंदगी हंसी ,
जिंदगी खुशी ,
जिंदगी मुस्कान ,
जिंदगी पहचान ।
जिंदगी फूल ,
जिंदगी महक,
जिंदगी हवा ,
जिंदगी चिडियों की चहक ।
जिंदगी तुम मुझे ऐसे ही अच्छी लगती हो ।
दुःख- गम , परेशानी भी तेरे ही हिस्से हैं ।
पर तुम मुझे हर रोज़
एक नयी ऊर्जा भरती हो ,
जब सुबह की पहली किरण के साथ जगती हो ।
जिंदगी तुम मुझे ऐसे ही अच्छी लगती हो ।

Monday, February 23, 2009

मेरा भी बर्थ डे मना दो ना

माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो ना ,
नए कपड़े मुझे भी लाकर दो ,
एक केक कटवा दो न ।
बोली सुखिया की बेटी एक दिन ,
कुछ ऐसा जोर चला दो न ।
माँ मेरा भी बर्थ मना दो ना ...
मेरे भी मित्र आयेंगे घर पर ,
घर भी खूब सजा होगा ,
उछल कूद फ़िर खूब चलेगी
उस दिन खूब मजा होगा ।
रामू ,रेखा , सुगिया, सुकनी ,
अपने राजा को बुलवा दो न ।
माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो न .....
जैसे सजता है मंत्री जी का घर ,
पहनती है उनकी बेटी जेवर ,
तंग गले का लाल शूट ,
माँ मुझको भी बनवा दो न ।
माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो न .....
हूक उठी सुखिया के दिल में ,
कैसे बेटी को समझाए ,
रोटी भी जब दूभर हो तो ,
लाल शूट वह कैसे लाये ।
नादान अबोध यह क्या जाने ,
कितना रिक्त है जीवन का कोना ,
इस पर उसकी ठुनक है प्यारी ,
माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो न ।
माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो ना ....
माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो न ...