Thursday, December 11, 2008

गावों की याद में

गावों की याद में ,
गुम हुए हम ।
खेतों की फसलें
और हरियाली कम ।
सोंच- सोंच हो जातीं
अब आखें नम ।
हो रहा विकास पर
कहाँ जा रहें हम ।
गावों की याद में .......

सरसों नदारद
और अलसी भी गुम ,
लौटती गायें भी ,
अब रंभाती कम ।
पूछते अब ख़ुद से,
कौन हैं हम ।
कैसे बताएं दिल का ये गम
गावों की याद में
गुम हुए हम ।

माटी की खुशबू
रिश्तों की तपन ,
माँ की ममता,
प्यारी छुवन ,
गावों की याद में ,
खोया सा मन ।
कहाँ नजर आता अब
वह अपनापन ।
गावों की याद में
भीगा ये मन
वो माटी की खुशबू
वो रिश्तों की तपन ........ ।



2 comments:

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

अरे भाई अमिताभ ये तो बड़ी पुरानी बात याद दिला दी ना तुमने........एक तो कविता ऐसी ऊपर से तुम्हें देखा तो...और भी अच्छा लगा... कादम्बिनी क्लब की याद हो आई....कितना पीछे छोड़ आए ना हम सब कुछ ....या समय ही हमें...??

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

yaar pahle word verification...phir swikriti.. ye sab kya hai yaar.....sabke paas jyaada time to nahin hota naa...hataao naa pliz....!!