छोटे- छोटे अक्षर कैसे ,
शब्दों में ढल जाते हैं ?
वाक्यों में फ़िर कैसे
ये शब्द बदल जाते हैं ,
फ़िर बनती कविता अनोखी
जो दिल को छू जाती है,
कैसे होता ये परिवर्तन
ये कोई भी जाने ना,
ये अक्षर तेरे -मेरे दिल के
अहसास बदल जाते हैं ।
छोटे -छोटे अक्षर कैसे ,
शब्दों में ढल जाते हैं
जो कहते हम ,
जो सुनते हम ,
जो बातें गढ़ जाते हैं,
मन की सारी अनुभूतियाँ भी ,
ये शब्द ही दे जाते हैं ।
दुःख हो तन का ,
या मन का सुख हो ,
ये शब्द बता जाते हैं ।
प्रेम , क्रोध, इर्ष्या , द्वेष ,
ये शब्द जता जाते हैं ।
छोटे -छोटे अक्षर कैसे ,
शब्दों में ढल जाते हैं ।
वाक्यों में फ़िर कैसे
ये शब्द बदल जाते हैं ,
शब्दों की ये भाषा गर
न होती तो क्या होता ?
ये धरती कैसी ?
आस्मां कैसा ?
ये इंसान कैसा होता ?
शब्दों का ये मेल न होता
तो हम ही बदल जाते ,
छोटे -छोटे अक्षर भी
फ़िर रूप बदल जाते।
फ़िर न बनती कोई कविता
जो दिल को छू जाती ,
तेरी - मेरी अनुभूतियाँ भी फ़िर
यूँ ही रह जातीं ।