Thursday, April 30, 2009

छोटे- छोटे अक्षर कैसे ,

शब्दों में ढल जाते हैं ?

वाक्यों में फ़िर कैसे

ये शब्द बदल जाते हैं ,

फ़िर बनती कविता अनोखी

जो दिल को छू जाती है,

कैसे होता ये परिवर्तन

ये कोई भी जाने ना,

ये अक्षर तेरे -मेरे दिल के

अहसास बदल जाते हैं ।

छोटे -छोटे अक्षर कैसे ,

शब्दों में ढल जाते हैं

जो कहते हम ,

जो सुनते हम ,

जो बातें गढ़ जाते हैं,

मन की सारी अनुभूतियाँ भी ,

ये शब्द ही दे जाते हैं ।

दुःख हो तन का ,

या मन का सुख हो ,

ये शब्द बता जाते हैं ।

प्रेम , क्रोध, इर्ष्या , द्वेष ,

ये शब्द जता जाते हैं ।

छोटे -छोटे अक्षर कैसे ,
शब्दों में ढल जाते हैं ।

वाक्यों में फ़िर कैसे
ये शब्द बदल जाते हैं ,

शब्दों की ये भाषा गर

न होती तो क्या होता ?

ये धरती कैसी ?

आस्मां कैसा ?

ये इंसान कैसा होता ?

शब्दों का ये मेल न होता

तो हम ही बदल जाते ,

छोटे -छोटे अक्षर भी

फ़िर रूप बदल जाते।

फ़िर न बनती कोई कविता

जो दिल को छू जाती ,

तेरी - मेरी अनुभूतियाँ भी फ़िर

यूँ ही रह जातीं ।

Sunday, April 5, 2009

तुम मुझे ऐसे ही अच्छी लगती हो

जिंदगी तुम मुझे ऐसे ही अच्छी लगती हो
जिंदगी आगाज़ ,
जिंदगी परवाज़ ,
जिंदगी कल ,
जिंदगी आज ।
जिंदगी हंसी ,
जिंदगी खुशी ,
जिंदगी मुस्कान ,
जिंदगी पहचान ।
जिंदगी फूल ,
जिंदगी महक,
जिंदगी हवा ,
जिंदगी चिडियों की चहक ।
जिंदगी तुम मुझे ऐसे ही अच्छी लगती हो ।
दुःख- गम , परेशानी भी तेरे ही हिस्से हैं ।
पर तुम मुझे हर रोज़
एक नयी ऊर्जा भरती हो ,
जब सुबह की पहली किरण के साथ जगती हो ।
जिंदगी तुम मुझे ऐसे ही अच्छी लगती हो ।

Monday, February 23, 2009

मेरा भी बर्थ डे मना दो ना

माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो ना ,
नए कपड़े मुझे भी लाकर दो ,
एक केक कटवा दो न ।
बोली सुखिया की बेटी एक दिन ,
कुछ ऐसा जोर चला दो न ।
माँ मेरा भी बर्थ मना दो ना ...
मेरे भी मित्र आयेंगे घर पर ,
घर भी खूब सजा होगा ,
उछल कूद फ़िर खूब चलेगी
उस दिन खूब मजा होगा ।
रामू ,रेखा , सुगिया, सुकनी ,
अपने राजा को बुलवा दो न ।
माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो न .....
जैसे सजता है मंत्री जी का घर ,
पहनती है उनकी बेटी जेवर ,
तंग गले का लाल शूट ,
माँ मुझको भी बनवा दो न ।
माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो न .....
हूक उठी सुखिया के दिल में ,
कैसे बेटी को समझाए ,
रोटी भी जब दूभर हो तो ,
लाल शूट वह कैसे लाये ।
नादान अबोध यह क्या जाने ,
कितना रिक्त है जीवन का कोना ,
इस पर उसकी ठुनक है प्यारी ,
माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो न ।
माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो ना ....
माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो न ...

Saturday, February 14, 2009

लगाव जरुरी है

ब्लॉग पर आए मुझे कुछ अधिक दिन नहीं हुए । इस बीच काफी अच्छा लगा यह जान कर
कि ब्लॉग लोगों से जुड़ने का काफी अच्छा जरिया है । अच्छा लगता है जब अपनी रचना पर , अपनी बात पर हमें प्रतिक्रिया मिलती है । लेकिन एक बात मुझे जो खटकती है वह यह है कि मुझे लगता है किहम काफी स्वार्थी हो गए है । किसी ने आपकी रचना पर प्रतिक्रिया दी तो पलट कर हम भी उनके ब्लॉग पर जा कर औपचारिकता पूरी कर देतें है । यह ठीक नहीं लगता है । होना तो यह चाहिए कि हम खुद ही अपने पसंद के ब्लोग्स पर जा कर अपनी तलाश पूरी करें , रचना को पढ़ कर जो महसूसा उसे ही अपनी प्रतिक्रिया के रूप में उकेर दें । न कि किसी ने प्रतिक्रिया दी तो उसके ब्लॉग में प्रतिकिया ठोंक दी - अच्छी रचना । अब चाहें वो रचना अच्छी लगे या न लगे । मुझे तो कम से कम यह नही जंचता । एक और बात, यह मेरी अपनी बात है , हो सकता है अन्य लोंगों को ये बात पसंद न आए । जो मेरी सोच से सहमत नही हैं उनसे पहले ही मैं क्षमा मांग लेता हूँ । लेकिन मेरा मानना है कि जुडाव दिल से होना चाहिए, जुबान से नहीं ।
ब्लॉग आज के समय में मुझे लगता है एक सरल और सहज माध्यम है अभिव्यक्ति का , अपनी बातों को उकेरने का, अपनी संस्कृति और साहित्य को बचाने का भी । ऐसे में इसका सहज और गंभीर उपयोग होना चाहिए न कि सतही और औपचारिक । कुल मिला कर लगाव जरूरी है

Saturday, January 31, 2009

कुछ और मज़ा है

मृत्यु का भय लेकर जीने में
सच मानो कुछ और मजा है ।
प्यार में इक धोखा खाने का
सच मानो कुछ और मज़ा है ।
सुख में ऊब चुके होने पर
दुःख लेने का और मजा है .
माँ की मीठी ममता पर
पापा की झिड़की का और मजा है ।
छोटी बहन को टॉफी देकर
छीन लेने का और मज़ा है ।
खामोशी के बाद मुखर होने का
सच मानो कुछ और मज़ा है ।
जीवन -मरण , सुख और दुःख,
ये सब जीवन के पहलू हैं ,
इनमे रह कर , इनसे डर कर
जीने में कुछ और मज़ा है ।

Sunday, January 25, 2009


पैदा हुआ जिस मिट्टी में
उस सर जमीं को सलाम,
धूप ली, हवा भी ले ली
उस मादरे वतन को सलाम ।
खून बन कर दौड़ता रगों में
वो पानी भी यहीं का है ,
ये मचलती मुहब्बत यही की ,
ये उफनती जवानी इसी की
प्यार की मीठी छुवन और
मन के कोने की जलन ,
सब कुछ तो इसका ही है ।
मेरा दिल , मेरी जान
ए वतन तुझ पे कुर्बान
ए वतन तुझ पे कुर्बान ।




गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें .



Saturday, January 24, 2009

जिन्दगी

जिन्दगी मेरे पास से हो कर गुजर गई ,
बैठा रहा मैं उसके इंतज़ार में ।
गुलों की तिजारत करता रहा उम्र भर ,
पर तकदीर फंस कर रह गयी खार में ।

क्यों मुहबत्त को करें बदनाम यारा ,
जब दिल ही बेवफाई कर गया ।
धोखा ,फरेब ,रुसवाई सब बेचारे हैं
ये ख़ुद ही छले गए हैं प्यार में ।

चुपके चुपके गम पीने में

दिल की बातें पढ़ लेता हूँ
सुंदर मूरत गढ़ लेता हूँ
तुम भी मुझ से मिल कर देखो
बिन पंखों मैं उड़ लेता हूँ ।
बात दुखों की मत कुछ करना ,
दिल की आहें दिल में भरना ,
कौन सुनेगा इस जंगल में
मेरा मरना , तेरा जीना ।
कोई नहीं है मेरा -तेरा ,
बस है एक फरेब का घेरा ,
फ़िर भी ऐसा कुछ कर लेता हूँ,
मैं दिल की बातें पढ़ लेता हूँ ।
मैं बढ़ता हूँ एक कदम
एक कदम बस तुम भी बढ़ लो
मेरी तरह गर गम को पी लो ,
तो बिन पंखों के तुम भी उड़ लो ।
सच कहता हूँ तुम्हें बताऊँ
खूब मजा हैं इस जीने में
चेहरे पर एक हंसी हो , पर
चुपके चुपके गम पीने में ।

Monday, January 19, 2009

जरदारी असंतुलित

भारत सहित अन्य देशों में आतंकवादी हमलों में पाक की संलिप्तता साबित होने, ख़ास कर मुंबई हमलों के बाद विश्व समुदाय के शिकंजे में ख़ुद को फंसता देख पाक राष्ट्रपती जरदारी दिमागी रूप से असंतुलित हो गए हैं । अपने देश में आतंकियों को आश्रय देने वाले जरदारी अब पत्रकारों को ही आतंकी करार दे रहें हैं। अब उन्हें कौन समझाए कि आतंकी किसे कहते हैं । दरअसल उन्होंने जब से होश संभाला तब से अपने चारों ओर आतंकियों को ही देखा , उन्हें ही समझा और जाना .ऐसे में लाजिमी है कि हर इन्सान उन्हें आतंकी नजर आए । लेकिन हमाम में ख़ुद को नंगा देखने वाला यदि पुरी दुनिया को ही नंगा समझ कर हमाम से बहार आ जाए तो उसकी स्तिथि का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
एक बात और है छोटे लोगों की सोंच भी छोटीही होती है । यह पाक को देख कर सहज ही अंदाजा हो जाता है । चरित्र हम नहीं बदल सकते । वोःहर किसी में जन्मजात होता है । पाक का भी चरित्र जन्मजात है । छल, झूठ, धोखा यहाँ विभाजन के साथ ही है । इसे समझा जा सकता है ।
लेकिन अब पानी हद पार कर चुका है । पत्रकारों को ही आतंकी करार देने लगे हैं जरदारी ऐसे में जरूरी हो गया है जरदारी का मानसिक ईलाज ।
पाक का आतंकी भारत में गिरफ्तार हुआ , सिम पाक और अमेरिका के मिले पाक मीडिया ने कसाब का घर, उसकी माता पिता सब दिखा दिया । अब जरदारी को लगा कि उनेहे वहाँ की मीडिया ही फंसा देगी तो कह दिया कि पत्रकार ही आतंकी हैं ।

Tuesday, January 6, 2009

कैसा नया वर्ष


गाय का रम्भाना वही,
चिडियों का चहचहाना वही ,
नदियों की कलकल भी वही ,
भौरों की भिन्-भिन पहले ही जैसी ,
फिर कैसा नया वर्ष ?
रामू की चिंता रोटी की वही ,
सुगिया की बच्ची के लिए आज भी दूध नही ,
लंगडा भिखारी भी मांगना नहीं भूला ,
तंगहाली पुरानी आज भी दिखती हर कहीं ,
फिर कैसा नया वर्ष ?
हिंदू भी वही, मुसलमान भी वही,
धरती न बदली , आसमान वही,
मेरा -तुम्हारा और दुराव भी है,
भक्त न बदले , भगवान् वही,
फिर कैसा नया वर्ष ?
वास्तव में जिंदिगी में इतनी ऊब है ,
कि मन को भुलाने का बहाना ये खूब है ।