Monday, February 23, 2009

मेरा भी बर्थ डे मना दो ना

माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो ना ,
नए कपड़े मुझे भी लाकर दो ,
एक केक कटवा दो न ।
बोली सुखिया की बेटी एक दिन ,
कुछ ऐसा जोर चला दो न ।
माँ मेरा भी बर्थ मना दो ना ...
मेरे भी मित्र आयेंगे घर पर ,
घर भी खूब सजा होगा ,
उछल कूद फ़िर खूब चलेगी
उस दिन खूब मजा होगा ।
रामू ,रेखा , सुगिया, सुकनी ,
अपने राजा को बुलवा दो न ।
माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो न .....
जैसे सजता है मंत्री जी का घर ,
पहनती है उनकी बेटी जेवर ,
तंग गले का लाल शूट ,
माँ मुझको भी बनवा दो न ।
माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो न .....
हूक उठी सुखिया के दिल में ,
कैसे बेटी को समझाए ,
रोटी भी जब दूभर हो तो ,
लाल शूट वह कैसे लाये ।
नादान अबोध यह क्या जाने ,
कितना रिक्त है जीवन का कोना ,
इस पर उसकी ठुनक है प्यारी ,
माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो न ।
माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो ना ....
माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो न ...

Saturday, February 14, 2009

लगाव जरुरी है

ब्लॉग पर आए मुझे कुछ अधिक दिन नहीं हुए । इस बीच काफी अच्छा लगा यह जान कर
कि ब्लॉग लोगों से जुड़ने का काफी अच्छा जरिया है । अच्छा लगता है जब अपनी रचना पर , अपनी बात पर हमें प्रतिक्रिया मिलती है । लेकिन एक बात मुझे जो खटकती है वह यह है कि मुझे लगता है किहम काफी स्वार्थी हो गए है । किसी ने आपकी रचना पर प्रतिक्रिया दी तो पलट कर हम भी उनके ब्लॉग पर जा कर औपचारिकता पूरी कर देतें है । यह ठीक नहीं लगता है । होना तो यह चाहिए कि हम खुद ही अपने पसंद के ब्लोग्स पर जा कर अपनी तलाश पूरी करें , रचना को पढ़ कर जो महसूसा उसे ही अपनी प्रतिक्रिया के रूप में उकेर दें । न कि किसी ने प्रतिक्रिया दी तो उसके ब्लॉग में प्रतिकिया ठोंक दी - अच्छी रचना । अब चाहें वो रचना अच्छी लगे या न लगे । मुझे तो कम से कम यह नही जंचता । एक और बात, यह मेरी अपनी बात है , हो सकता है अन्य लोंगों को ये बात पसंद न आए । जो मेरी सोच से सहमत नही हैं उनसे पहले ही मैं क्षमा मांग लेता हूँ । लेकिन मेरा मानना है कि जुडाव दिल से होना चाहिए, जुबान से नहीं ।
ब्लॉग आज के समय में मुझे लगता है एक सरल और सहज माध्यम है अभिव्यक्ति का , अपनी बातों को उकेरने का, अपनी संस्कृति और साहित्य को बचाने का भी । ऐसे में इसका सहज और गंभीर उपयोग होना चाहिए न कि सतही और औपचारिक । कुल मिला कर लगाव जरूरी है