माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो ना ,
नए कपड़े मुझे भी लाकर दो ,
एक केक कटवा दो न ।
बोली सुखिया की बेटी एक दिन ,
कुछ ऐसा जोर चला दो न ।
माँ मेरा भी बर्थ मना दो ना ...
मेरे भी मित्र आयेंगे घर पर ,
घर भी खूब सजा होगा ,
उछल कूद फ़िर खूब चलेगी
उस दिन खूब मजा होगा ।
रामू ,रेखा , सुगिया, सुकनी ,
अपने राजा को बुलवा दो न ।
माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो न .....
जैसे सजता है मंत्री जी का घर ,
पहनती है उनकी बेटी जेवर ,
तंग गले का लाल शूट ,
माँ मुझको भी बनवा दो न ।
माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो न .....
हूक उठी सुखिया के दिल में ,
कैसे बेटी को समझाए ,
रोटी भी जब दूभर हो तो ,
लाल शूट वह कैसे लाये ।
नादान अबोध यह क्या जाने ,
कितना रिक्त है जीवन का कोना ,
इस पर उसकी ठुनक है प्यारी ,
माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो न ।
माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो ना ....
माँ मेरा भी बर्थ डे मना दो न ...
8 comments:
कैसे बेटी को समझाए ,
रोटी भी जब दूभर हो तो ,
लाल शूट वह कैसे लाये ।
नादान अबोध यह क्या जाने ,
कितना रिक्त है जीवन का कोना ....
Bal mun ki sunder kavita....!!
अबोध बच्ची की भावना और लाचार माँ की वेदना की झलक. मार्मिक कविता.
sundar kavita
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
कैसे बेटी को समझाए ,
रोटी भी जब दूभर हो तो ,
लाल शूट वह कैसे लाये ।
नादान अबोध यह क्या जाने ,
कितना रिक्त है जीवन का कोना ....
sunder bhavna ka samudra.
मेरे ब्लॉग पर आ कर आपने हौसला बढाया आपका आभार, आप की कविता पसंद आई !
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