कैसा नव वर्ष
कहते है कि वह साल पुराना चला गया।
अब इस धरती पर सब कुछ होगा नया नया।।
पर दिन भी वही और रात पुरानी लगती है।
ना सूरज में भी कोई मुझको बात सुहानी लगती है।
चांद में भी वही काला दाग पुराना लगता है।
हर जीवन में ताल वही और राग पुराना लगता है।।
अब भी चौराहे पर वही पुराना बचपन पलता है।
कई घरों में आज भी चूल्हा कचरे से ही जलता है।।
आज भी धन्नासेठ यहां पर धन-दौलत में हैं डूब रहे।
और लोग हजारों यहां पड़े हैं, जो जीवन से ऊब रहे।।
आज भी कूड़े में अनचाही किलकारी गूंजा करती है।
और बीच चौराहे पर रोज यहां निर्भयाएं मरती हैं।
फिर कैसे कहते हो कि, साल नया एक आयेगा?
क्या निश्चय है वह हमारे पाप पुराने धो जायेगा?
हर साल यहां पर यूंही झूठे सपने संजोये जाते हैं।
नये साल की रातों में, कई अरमान डुबोये जाते हैं।।
जब क्लबों और बारों में यह रात सुरमई होती हैं,
दूर कहीं किसी मां की सूखी छाती रोती है।
और सिसक कर मर जाता है कोई प्यार यहां।
तो फिर कैसे आता है नया साल मेरे यार यहां?
जब तक भूख से मरना देश में कम नहीं होगा,
नये साल के आने से भी दर्द वो कम नहीं होगा।
जब तक निर्भयाएं यहां चौराहे पर चिल्लायेगी,
सच मानो नयी सुबह भी यहां आने से शरमायेगी।।
भूख, रुदन और काम वासना से ऊपर जब उठ जाओगे।
हर रात सुहानी होगी तब, हर सुबह नया साल पाओगे।
@अमिताभ प्र्रियदर्शी
कहते है कि वह साल पुराना चला गया।
अब इस धरती पर सब कुछ होगा नया नया।।
पर दिन भी वही और रात पुरानी लगती है।
ना सूरज में भी कोई मुझको बात सुहानी लगती है।
चांद में भी वही काला दाग पुराना लगता है।
हर जीवन में ताल वही और राग पुराना लगता है।।
अब भी चौराहे पर वही पुराना बचपन पलता है।
कई घरों में आज भी चूल्हा कचरे से ही जलता है।।
आज भी धन्नासेठ यहां पर धन-दौलत में हैं डूब रहे।
और लोग हजारों यहां पड़े हैं, जो जीवन से ऊब रहे।।
आज भी कूड़े में अनचाही किलकारी गूंजा करती है।
और बीच चौराहे पर रोज यहां निर्भयाएं मरती हैं।
फिर कैसे कहते हो कि, साल नया एक आयेगा?
क्या निश्चय है वह हमारे पाप पुराने धो जायेगा?
हर साल यहां पर यूंही झूठे सपने संजोये जाते हैं।
नये साल की रातों में, कई अरमान डुबोये जाते हैं।।
जब क्लबों और बारों में यह रात सुरमई होती हैं,
दूर कहीं किसी मां की सूखी छाती रोती है।
और सिसक कर मर जाता है कोई प्यार यहां।
तो फिर कैसे आता है नया साल मेरे यार यहां?
जब तक भूख से मरना देश में कम नहीं होगा,
नये साल के आने से भी दर्द वो कम नहीं होगा।
जब तक निर्भयाएं यहां चौराहे पर चिल्लायेगी,
सच मानो नयी सुबह भी यहां आने से शरमायेगी।।
भूख, रुदन और काम वासना से ऊपर जब उठ जाओगे।
हर रात सुहानी होगी तब, हर सुबह नया साल पाओगे।
@अमिताभ प्र्रियदर्शी