*नारी*
नारी तेरे नाम अनेक,
लेकिन तुम होकर एक।
इस जग में शील और,
शौर्य भर जाती हो।
स्त्री, महिला, औरत,
कामिनी, कांता, बनिता,
और अबला, रमणी, सुंदरी की,
संज्ञा हर जाती हो।
जन्म लेकर तुम कन्या,
आत्मजा, पुत्री और तनया,
तनुजा, नंदिनी, सुता,
बेटी, दुहिता कहाती हो।
फिर तरुणी और बाला,
कुमारी, किशोरी, श्यामा,
नव यौवना होकर तुम,
युवती बन जाती हो।
सहोदया,भगिनी, जीजी,
अनुजा, अग्रजा, दीदी,
बहिन, बांधवी तुम,
भाईयों की हो जाती हो।
पत्नी, भार्या, अर्धांगिनी,
प्राणप्रिया, वामांगिनी,
सहचरी, कलत्र, दारा से,
तुम नर संगिनी बन जाती हो।
माता, माई, मैया, आई,
प्रसु और जननी कहाई,
अम्मी,मम्मी, अम्मा मां बन,
तुम सृष्टि रच जाती हो।
लज्जा, देवी, धृति, चंडी,
प्रज्ञा, दूति:, कात्यायनी,
आत्रेयी आदि नामों से,
तुम जग में पूजी जाती हो।
मतकाशिनी, वरारोहा,
वरवर्णिनी, पतिर्वरा
स्वयंवरा, बन कर
नर श्रेष्ठ तुम हो जाती हो।
महिषी, भिषेका, कृतस,
मानवी, मानसिका,भामा,
अध्यूढ़ा, श्यालिका संज्ञा तुम्हें
विदूषी बनाती है।
और भी अनेक नामों,
से हो तुम जानी जाती,
श्रवणा,सौरिंध्रि: निर्वीरा
भी कहाती हो।
*अमिताभ प्रियदर्शी*