छोटे- छोटे अक्षर कैसे ,
शब्दों में ढल जाते हैं ?
वाक्यों में फ़िर कैसे
ये शब्द बदल जाते हैं ,
फ़िर बनती कविता अनोखी
जो दिल को छू जाती है,
कैसे होता ये परिवर्तन
ये कोई भी जाने ना,
ये अक्षर तेरे -मेरे दिल के
अहसास बदल जाते हैं ।
छोटे -छोटे अक्षर कैसे ,
शब्दों में ढल जाते हैं
जो कहते हम ,
जो सुनते हम ,
जो बातें गढ़ जाते हैं,
मन की सारी अनुभूतियाँ भी ,
ये शब्द ही दे जाते हैं ।
दुःख हो तन का ,
या मन का सुख हो ,
ये शब्द बता जाते हैं ।
प्रेम , क्रोध, इर्ष्या , द्वेष ,
ये शब्द जता जाते हैं ।
छोटे -छोटे अक्षर कैसे ,
शब्दों में ढल जाते हैं ।
वाक्यों में फ़िर कैसे
ये शब्द बदल जाते हैं ,
शब्दों की ये भाषा गर
न होती तो क्या होता ?
ये धरती कैसी ?
आस्मां कैसा ?
ये इंसान कैसा होता ?
शब्दों का ये मेल न होता
तो हम ही बदल जाते ,
छोटे -छोटे अक्षर भी
फ़िर रूप बदल जाते।
फ़िर न बनती कोई कविता
जो दिल को छू जाती ,
तेरी - मेरी अनुभूतियाँ भी फ़िर
यूँ ही रह जातीं ।
6 comments:
शब्द की सामर्थ्य यही है. इसी लिए कहा है कलम तलवार से अधिक ताकतवर है.
बहुत खूब, सच है शब्दों की ताकत अपरमपार है
बहुत सुन्दर....
रचना बहुत अच्छी लगी.....
मेरा नया ब्लाग जो बनारस के रचनाकारों पर आधारित है,जरूर देंखे...
www.kaviaurkavita.blogspot.com
sach hi kaha hai aapane!..kavita aise hi ban jaati hai!...sunder shabdon ki mala!
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