गाय का रम्भाना वही,
चिडियों का चहचहाना वही ,
नदियों की कलकल भी वही ,
भौरों की भिन्-भिन पहले ही जैसी ,
फिर कैसा नया वर्ष ?
रामू की चिंता रोटी की वही ,
सुगिया की बच्ची के लिए आज भी दूध नही ,
लंगडा भिखारी भी मांगना नहीं भूला ,
तंगहाली पुरानी आज भी दिखती हर कहीं ,
फिर कैसा नया वर्ष ?
हिंदू भी वही, मुसलमान भी वही,
धरती न बदली , आसमान वही,
मेरा -तुम्हारा और दुराव भी है,
भक्त न बदले , भगवान् वही,
फिर कैसा नया वर्ष ?
वास्तव में जिंदिगी में इतनी ऊब है ,
कि मन को भुलाने का बहाना ये खूब है ।
3 comments:
kal, aaj our kal ek jaisa. bahut khub.
आप अम्माजी के ब्लॉग पर आये और रचना को सराहा उसके लिए आभारी हूँ, आपकी ये रचना यथार्थ से जुड़ी है , आपकी इस रचना से मिलते जुलते भाव वाले कुछ हाइकु आप इस लिंक पर देख सकते हैं जो मैंने नववर्ष पर लिखे थे...
http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/naya_saal/sets/dr_bhawna.htm
Best Valentines Day Roses Online
Best Valentines Day Gifts Online
Send Teddy Day Gifts Online
Post a Comment