Saturday, December 13, 2008

भूतनाथ के लिए

कुछ यादें पुरानी सहेजना चाहता हूँ ,
तुम्हारा अक्ष फिर से उकेरना चाहता हूँ ,
मिट गयीं हैं यादें तुम्हारी जो दिल से ,
उनको मैं फ़िर से समेटना चाहता हूँ ।

बात कह दी तुमने कुछ पुराने दिनों की ,
बात वर्षों है पुरानी , नहीं दिनों -महीनों की ,
वो कादम्बिनी क्लब की कविता -कहानी ,
संग फ़िर से तुम्हारे बांटना चाहता हूँ ।

पर बन गए तुम भूतनाथ इस जहाँ में
मैं वही अमिताभ बन कर खडा हूँ ,
परदा हटा दो , ज़रा मैं भी तो देखूं ,
जिन्दगी के पन्ने पलटना चाहता हूँ ।

1 comment:

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-.................मैं भूत बोल रहा हूँ........!!मुझे नहीं जानते..........??अरे दुष्ट...........हमेशा खुश-सी रहने वाली इस आत्मा को तुम नहीं जानते.....?? हमसे दूर हो जाने वाले ओ प्यारे से शख्स...........हमने कभी अपनी यादें नहीं बिसराई..........ब्लॉग नहीं देखता था...तब भी तुम याद थे....मैंने अपनी खुशनुमा पलों को बार-बार-बार-बार जिया है....इस बहाने अपने अतीत को फ़िर से पिया है.....मेरे अतीत में तुम भी अब तक हँसते-बोलते बैठे हुए हो....अपनी जिन्दगी में इतने सारे लोगों को आते-जाते देखा..........की जिन्दगी नई और पुरानी एक साथ ही लगी........भूतनाथ बनकर मैं इसे दगा देने की फिराक में हूँ.....मौत आएगी तो मैं मिलुगा नहीं....और भूत की मौत तो होनी ही नहीं.....हा..हा..हा..हा..भाई अमिताभ प्यारी यादें एक तिलिस्म होती हैं....इसमें घुसकर कोई बाहर निकलना नहीं चाहता....मैं तो एक साथ ही अतीत और वर्तमान बनकर रहता हूँ.....मजा आता है....मैं दूसरों की भी यादें जगाना रहता हूँ....और भी बहुत कुछ....मगर इक-इक कर के.....मगर नाम तो मैं अपना नहीं बताउंगा मैं....कभी नहीं....वो तो तुम्हे ही याद करना होगा...कि कौन है जो ऐसा था.....आज भी ऐसा ही है...बस थोड़ा-सा बदल कर.......यु विल बी "चकित"...........आज बस इतना ही.....और हाँ कविता का जवाब मैं कविता से ही देता रहा हूँ....आज तुन्हें बख्श दिया.....हा.....हा...हा..हा..हा...हा...!!अब सोचते रहो कि क्या बाला हूँ मैं.....!!??