Tuesday, January 6, 2009

कैसा नया वर्ष


गाय का रम्भाना वही,
चिडियों का चहचहाना वही ,
नदियों की कलकल भी वही ,
भौरों की भिन्-भिन पहले ही जैसी ,
फिर कैसा नया वर्ष ?
रामू की चिंता रोटी की वही ,
सुगिया की बच्ची के लिए आज भी दूध नही ,
लंगडा भिखारी भी मांगना नहीं भूला ,
तंगहाली पुरानी आज भी दिखती हर कहीं ,
फिर कैसा नया वर्ष ?
हिंदू भी वही, मुसलमान भी वही,
धरती न बदली , आसमान वही,
मेरा -तुम्हारा और दुराव भी है,
भक्त न बदले , भगवान् वही,
फिर कैसा नया वर्ष ?
वास्तव में जिंदिगी में इतनी ऊब है ,
कि मन को भुलाने का बहाना ये खूब है ।

3 comments:

सुनील मंथन शर्मा said...

kal, aaj our kal ek jaisa. bahut khub.

Dr.Bhawna Kunwar said...

आप अम्माजी के ब्लॉग पर आये और रचना को सराहा उसके लिए आभारी हूँ, आपकी ये रचना यथार्थ से जुड़ी है , आपकी इस रचना से मिलते जुलते भाव वाले कुछ हाइकु आप इस लिंक पर देख सकते हैं जो मैंने नववर्ष पर लिखे थे...

http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/naya_saal/sets/dr_bhawna.htm

Daisy said...

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