Friday, November 14, 2008

च... च... च...

बेडो में मध्याह्न भोजन खा कर छह बच्चों ने दम तोड़ दिया । कितना मार्मिक कितना दुखद है यह की जिन गरीब बच्चों को खाना नहीं मिलता, उनको दोपहर के खाने का लालच देकर स्कूल बुलाया जाता है । लेकिन उसी दोपहर के खाने को खाने के बाद छः बच्चे मर जाते है । अब इससे दुखद क्या होगा । जब -जब सरकारी योजनाएं घोषित होतीं हैं , गरीबों के मन में एक उम्मीद जगती है । लेकिन वे योजनां हीं उनके अरमानों का गला घोंट देतीं हैं ।
बेडो का राजकीय आदिवासी उच्च विद्यालय इसका तजा उदहारण है । विनीत, सुंदर , सिकंदर , जैक्सन और शैलेन्द्र की मान को यह उम्मीद थी की बच्चे को पढ़ने की चिंता के साथ उनके खाने की चिंता मध्याह्न भोजन की सरकारी योजना ने दूर क्र दी । लेकिन उन्हें कहाँ माँलूम था कि यह योजना उम्मीद की नही मौत की ख़बर ले कर आयेगी ?
आख़िर सरकारी योजनाओं के साथ हीं ऐसा क्यों होता है ? सड़क बनने के साथ हीं टूट जाती है ? स्कूल की छत गिर जाती है ? सरकारी अनाज खा कर बच्चे मर जातें हैं ? फिर जाँच का नाटक शुरू है , सालों गुजर जातें हैं पर परिणाम नही आता है । पीड़ित के मां - बाप भी मन मसूस कर रह जातें हैं ।
भई मत कीजिये ऐसी राजनीती .कम से कम बच्चों की लाश पर तो ऐसा नहीं हीं होना चाहिए। चाहे वह विनीय हो या राहुल ।
बेडो की तरह बच्चों की भूख पर तो कभी नहीं .