Monday, November 24, 2008

खाली पन्ने

जीवन के कई पन्ने खाली रह जाते है । यह ब्लॉग उन्हीं खाली पन्नों के बारे में कुछ कहता है । कई बार कई बातें अनकही रह जाती हैं । चाह कर भी हम कह नहीं पाते ऐसे में कागज कलम ही बनते हैं साधन । बहुत अच्छा लगता है जब मन में दबा गुबार निकल जाता है। यह ब्लॉग उन्हीं दबे गुबारों की कहानी है। यह मेरी ही नहीं उन सभी लोगों का ब्लॉग है जो कुछ कहना चाह कर भी कह नहीं पाते । अपनी भड़ास निकाल लेना आसान है , किसी की सुनानाना मुश्किल । सुन कर संजो लेना उससे भी मुश्किल । यह ब्लॉग ऐसे ही लोगों के लिए है ।
मैं बस इतना ही कहना चाहूंगा -
आ बैठ नदी के तीरे
हम कुछ बोलें धीरे -धीरे
कुछ सुमनों की , कुछ सपनों की
कुछ सुगंध की कथा कहें ,
पास -पास हम यूँ ही बैठें
अपनी-अपनी व्यथा कहें ।
इस ब्लॉग के खाली पन्नों पर आप का स्वागत है .

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया बात लिखी है।

सुनील मंथन शर्मा said...

khali panno ko bharna bhi jaruri hai bhaiya.